कला
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों में कला के प्रति स्पष्ट अभिरुचि दिखायी देती है।
हड़प्पा सभ्यता की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ हैं- उनकी मुहरें, अब तक लगभग 2000 मुहरें प्राप्त हुई हैं। इनमे से अधिकांश मुहरें, लगभग 500, मोहनजोदड़ो से मिली हैं। मुहरों के निर्माण में सेलखड़ी का प्रयोग किया गया है। वर्गाकार मुद्राएं सर्वाधिक प्रचलित थीं।
अधिकांश मुहरों पर लघु लेखों के साथ साथएक सिंगी सांड, भैंस, बाघ, बकरी और हाथी की आकृतियाँ खोदी गयी हैं। सैन्धव मुहरे बेलनाकार, आयताकार एवं वृत्ताकार हैं।
इस काल में बने मृदभांड भी कला की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। मृदभांडों पर आम तौर से वृत्त या वृक्ष की आकृतियाँ भी दिखाई देती हैं। ये मृदभांड चिकने और चमकीले होते थे। मृदभांडों पर लाल एवं काले रंग का प्रयोग किया गया है।
सिन्धु सभ्यता में भारी संख्या में आग में पकी लघु मुर्तिया मिली हैं, जिन्हें 'टेराकोटा फिगरिन' कहा जाता है। इनका प्रयोग या तो खिलौनों के रूप में या तो पूज्य प्रतिमाओं के रूप में होता था।
इस काल का शिल्प काफी विकसित था। तांबे के साथ टिन मिलाकर कांसा तैयार किया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ हैं- उनकी मुहरें, अब तक लगभग 2000 मुहरें प्राप्त हुई हैं। इनमे से अधिकांश मुहरें, लगभग 500, मोहनजोदड़ो से मिली हैं। मुहरों के निर्माण में सेलखड़ी का प्रयोग किया गया है। वर्गाकार मुद्राएं सर्वाधिक प्रचलित थीं।
अधिकांश मुहरों पर लघु लेखों के साथ साथएक सिंगी सांड, भैंस, बाघ, बकरी और हाथी की आकृतियाँ खोदी गयी हैं। सैन्धव मुहरे बेलनाकार, आयताकार एवं वृत्ताकार हैं।
इस काल में बने मृदभांड भी कला की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। मृदभांडों पर आम तौर से वृत्त या वृक्ष की आकृतियाँ भी दिखाई देती हैं। ये मृदभांड चिकने और चमकीले होते थे। मृदभांडों पर लाल एवं काले रंग का प्रयोग किया गया है।
सिन्धु सभ्यता में भारी संख्या में आग में पकी लघु मुर्तिया मिली हैं, जिन्हें 'टेराकोटा फिगरिन' कहा जाता है। इनका प्रयोग या तो खिलौनों के रूप में या तो पूज्य प्रतिमाओं के रूप में होता था।
इस काल का शिल्प काफी विकसित था। तांबे के साथ टिन मिलाकर कांसा तैयार किया जाता था।
अन्य जानकारी
प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह यहां के लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था। हड़प्पाई लिपि का पहला नमूना 1853 ईस्वी में मिला था और 1923 में पूरी लिपि प्रकाश में आई परन्तु अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिन्धु सभ्यता की लिपि दायें से बाएं लिखी जाती थी। इस लिपि में 700 चिन्ह अक्षरों में से 400 के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है।
व्यापार के लिए उन्हें माप तौल की आवश्यकता हुई और उन्होनें इसका प्रयोग भी किया।
यह सभ्यता मुख्यतः 2500 ई.पू. से 1800 ई. पू. तक रही। यह सभ्यता अपने अंतिम चरण में ह्वासोन्मुख थी।
मोहनजोदड़ो (Mohenjo Daro) नगर से जो मानव प्रस्तर मूर्तियां मिली हैं, उसमें सेदाढ़ी युक्त सिर विशेष उल्लेखनीय हैं।
मोहनजोदड़ो ((Mohenjo Daro)) के अन्तिम चरण से नगर क्षेत्र के अन्दर मकानों तथा सार्वजनिक मार्गो पर 42 कंकाल अस्त-व्यस्त दशा में पड़े हुए मिले हैं।
इसके अतिरिक्त मोहनजोदाड़ो से लगभग 1398 मुहरें (मुद्राएँ) प्राप्त हुयी हैं जो कुल लेखन सामग्री का 56.67 प्रतिशत अंश है।
पत्थर के बने मूर्तियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शैलखड़ी से बना 19 सेमी. लम्बा 'पुरोहित' का धड़ है।
मोहनजोदड़ो की एक मुद्रा पर एक आकृति है जिसमें आधा भाग 'मानव' का है आधा भाग 'बाघ' का है। एक सिलबट्टा तथा मिट्टी का तराजू भी मिला है।
सिंधु सभ्यता प्रमुख नगर एवं उनके शोधकर्ता
सिंधु सभ्यता प्रमुख नगर एवं उनके शोधकर्ता
नगर नाम | खोजकर्ता | खोजवर्ष | नदीकिनारा |
---|---|---|---|
हड़प्पा | माधोस्वरुप वत्स दयाराम साहनी | १९२१ | रावी नदी |
मोहेंजोदड़ो | राखालदास बॅनर्जी | १९२२ | सिंधु नदी |
रोपड़ | यज्ञदत्त शर्मा | १९५३ | सतलज नदी |
कालीबंगा | ब्रजवासी लाल अमलानंद घोष | १९५३ | घग्घर नदी |
लोथल | ए. रंगनाथ राव | १९५४ | भोगवा नदी |
चन्हुदडो | एन गोपाल मुजुमदार | १९३१ | सिंधु नदी |
सुरकोटड़ा | जगपति जोशी | १९६४ | |
बनावली | रविंद्रसिंग बिष्ट | १९७३ | |
आलमगीरपुर | यज्ञदत्त शर्मा | १९५८ | हिंडन नदी |
रंगपुर | माधोस्वरुप वत्स रंगनाथ राव | १९३१ - १९५३ | मदर नदी |
कोटदीजी | फजल अहमद खान | १९५३ | सिंधु नदी |
सुत्कागेनडोर | ऑरेल स्टाइन जॉर्ज एफ डेल्स | १९२७ | दाश्त नदी |
धौलावीरा | जे.पी. जोशी | 1967 | |
दैमाबाद | आर. एस. विष्ट | 1990` | प्रवरा नदी |
देसलपुर | के. वी. सुन्दराजन | 1964 | |
भगवानपुरा | जे.पी. जोशी | सरस्वती नदी | |
बालाकोट | जॉर्ज एफ डेल्स | १९७९ | अरब सागर |
हड़प्पा सभ्यता में आयात होने वाली वस्तुएं
वस्तुएं | स्थल (प्रदेश) |
---|---|
टिन | अफगानिस्तान और ईरान से |
चांदी | अफगानिस्तान और ईरान से |
सीसा | अफगानिस्तान, राजस्थान और ईरान से |
सेल खड़ी | गुजरात, राजस्थान तथा बलूचिस्तान से |
सोना | ईरान से |
तांबा | बलूचिस्तान और राजस्थान के खेतड़ी से |
लाजवर्द मणि | मेसोपोटामिया |
सिन्धु सभ्यता से सम्बंधित महत्वपूर्ण वस्तुएं
महत्वपूर्ण वस्तुएं | प्राप्ति स्थल |
---|---|
तांबे का पैमाना | हड़प्पा |
सबसे बड़ी ईंट | मोहनजोदड़ो |
केश प्रसाधन (कंघी) | हड़प्पा |
वक्राकार ईंटें | चन्हूदड़ो |
जुटे खेत के साक्ष्य | कालीबंगा |
मक्का बनाने का कारखाना | चन्हूदड़ो, लोथल |
फारस की मुद्रा | लोथल |
बिल्ली के पैरों के अंकन वाली ईंटे | चन्हूदड़ो |
युगल शवाधन | लोथल |
मिटटी का हल | बनवाली |
चालाक लोमड़ी के अंकन वाली मुहर | लोथल |
घोड़े की अस्थियां | सुरकोटदा |
हाथी दांत का पैमाना | लोथल |
आटा पिसने की चक्की | लोथल |
ममी के प्रमाण | लोथल |
चावल के साक्ष्य | लोथल, रंगपुर |
सीप से बना पैमाना | मोहनजोदड़ों |
कांसे से बनी नर्तकी की प्रतिमा | मोहनजोदड़ों |