सिंधु घाटी सभ्यता जिसे इंडस वैली सिविलाइज़ेशन भी कहते हैं विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। (३३०० ईसापूर्व से १७०० ईसापूर्व तक)
यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की हुई। मिस्र की सभ्यता के 7,000 ईसा पूर्व से 3,000 ईसा पूर्व तक रहने के प्रमाण मिलते हैं, जबकि मेसोपोटामिया की सभ्यता 6500 ईसा पूर्व से 3,100 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी।
20वीं सदी के आरंभ तक इतिहासकारों एवं पुरातत्ववेत्ताओं ने यह धारणा थी की वैदिक सभ्यता ही भारत की प्राचीनतम सभ्यता है, किन्तु 1921 और 1922 में क्रमशः हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नमक स्थलों की खुदाई से यह स्पष्ट हो गया की वैदिक सभ्यता से पूर्व भी भारत में एक अन्य सभ्यता भी अस्तित्व में थी।
1826 चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया।
यह हड़प्पा सभ्यता और 'सिंधु-सरस्वती सभ्यता' के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ।
20वीं सदी के आरंभ तक इतिहासकारों एवं पुरातत्ववेत्ताओं ने यह धारणा थी की वैदिक सभ्यता ही भारत की प्राचीनतम सभ्यता है, किन्तु 1921 और 1922 में क्रमशः हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नमक स्थलों की खुदाई से यह स्पष्ट हो गया की वैदिक सभ्यता से पूर्व भी भारत में एक अन्य सभ्यता भी अस्तित्व में थी।
मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर २०१४ में भिर्दाना को सिंधु घाटी सभ्यता का अबतक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया।
जब 1856 ई. में ‘जॉन विलियम ब्रन्टम’ ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया।
बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में एलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की।
इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक 'सर जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 में इस स्थान हड़प्पा की खुदाई करवायी। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया।
1904 में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग (ASI) का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा।
लगभग एक वर्ष बाद 1922 में 'श्री राखल दास बॅनर्जी' के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के 'लरकाना' ज़िले के मोहनजोदाड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला।
इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने क उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवतः यह सभ्यता सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित है, अतः इस सभ्यता का नाम 'सिधु घाटी की सभ्यता' (Indus Valley Civilization) रखा गया।
सबसे पहले 'हड़प्पा' नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण 'सिन्धु सभ्यता' का नाम 'हड़प्पा सभ्यता' पड़ा। पर कालान्तर में पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियां बतलाया।
प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है।
सिन्धु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें से ९२५ केन्द्र भारत में है। ८० प्रतिशत स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। अभी तक कुल खोजों में से ३ प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है।
इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम दिया, क्योंकि यह क्षेत्र सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैं, पर बाद में रोपड़, लोथल, कालीबंगा, वनमाली, रंगापुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे।
अतः कई इतिहासकार इस सभ्यता का प्रमुख केन्द्र हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को 'हड़प्पा सभ्यता' नाम देना अधिक उचित मानते हैं।
भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल ने 1924 में सिन्धु सभ्यता के बारे में तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।
हड़प्पा संस्कृति के स्थल
इस परिपक्व सभ्यता के केन्द्र-स्थल पंजाब तथा सिन्ध में था। तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ।
हड़प्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब, सिन्ध और बलूचिस्तान के ही नहीं, बल्कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमान्त भाग भी थे।
इसका फैलाव उत्तर में रहमानढेरी से लेकर दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट्र) तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट के सुत्कागेनडोर से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ और कुरुक्षेत्र तक था। प्रारंभिक विस्तार जो प्राप्त था उसमें सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार था।
अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस संस्कृति के कुल 1000 स्थलों का पता चल चुका है। इनमें से ६ को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है। ये हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ों, लोथल, कालीबंगा, बणावली है। इनमें से दो नगर बहुत ही महत्वपूर्ण हैं - पंजाब का हड़प्पा तथा सिन्ध का मोहें जो दड़ो। दोनो ही स्थल वर्तमान पाकिस्तान में हैं।
दोनो एक दूसरे से 483 किमी दूर थे और सिंधु नदी द्वारा जुड़े हुए थे। तीसरा नगर मोहें जो दड़ो से 130 किमी दक्षिण में चन्हुदड़ो स्थल पर था तो चौथा नगर गुजरात के खंभात की खाड़ी के उपर लोथल नामक स्थल पर।
इसके अतिरिक्त राजस्थान के उत्तरी भाग में कालीबंगा तथा हरियाणा के हिसार जिले का बनावली। इन सभी स्थलों पर परिपक्व तथा उन्नत हड़प्पा संस्कृति के दर्शन होते हैं।
विभिन्न जगहों पर सिंधु घाटी सभ्यता के शहर
बलूचिस्तानमकरान तट, सुत्कागेनडोर, सुत्काकोह, बालाकोट, डावरकोट
सिंध
मोहनजोदड़ों, चन्हूदड़ों, जूडीरोजोदड़ों, आमरी, कोटदीजी, अलीमुराद, रहमानढेरी, राणाधुडई इत्यादि।
मोहनजोदड़ों, चन्हूदड़ों, जूडीरोजोदड़ों, आमरी, कोटदीजी, अलीमुराद, रहमानढेरी, राणाधुडई इत्यादि।
पश्चिमी पंजाब
डेरा इस्माइलखान, जलीलपुर, रहमानढेरी, गुमला, चक-पुरवानस्याल
डेरा इस्माइलखान, जलीलपुर, रहमानढेरी, गुमला, चक-पुरवानस्याल
गुजरात
लोथल, सुरकोतदा, रंगपुर, रोजदी, मालवड, देसलपुर, धोलावीरा, भगतराव, पाडरी, प्रभास-पाटन, मेघम, वेतेलोद, नागेश्वर, कुन्तासी, शिकारपुर
लोथल, सुरकोतदा, रंगपुर, रोजदी, मालवड, देसलपुर, धोलावीरा, भगतराव, पाडरी, प्रभास-पाटन, मेघम, वेतेलोद, नागेश्वर, कुन्तासी, शिकारपुर
मुंडीगाक, सोर्तगोई
हरियाणा
राखीगढ़ी, भिर्दाना, बनावली, कुणाल, मीताथल, सिसवल, वणावली, राखीगढ़, वाड़ा तथा वालू।
पंजाब
रोपड़, बाड़ा, संघोंल, कोटलानिहंग ख़ान, चक 86 वाड़ा, ढेर-मजरा।
महाराष्ट्र
दायमाबाद
दायमाबाद
उत्तर प्रदेश
आलमगीरपुर, रावण उर्फ़ बडागांव, अम्बखेडी
आलमगीरपुर, रावण उर्फ़ बडागांव, अम्बखेडी
जम्मू कश्मीर
मांडा
राजस्थान
कालीबंगा