रेग्युलेटिंग एक्ट (नियामक अधिनियम) १७७३ - UPSC Academy - Competitive Exams Hindi Notes

Sunday, 26 February 2017

रेग्युलेटिंग एक्ट (नियामक अधिनियम) १७७३

रेग्युलेटिंग अधिनियम १७७३ की पृष्ठभूमि
०१. दिवालियापन और दोहरी राजनीति के दुष्परिणाम के वजहसे कंपनीने ब्रिटिश सरकारसे १४ लाख ऋण माँगा। इस घटना से फायदा लेकर कंपनीपर नियंत्रण प्राप्त करने के हेतु ब्रिटिश संसदने यह कानून १७७३ में लागू किया।


०२. कंपनी के सेवकों ने भारी पैमाने पर बंगाल में अत्याचार किये। कारागीरोंसे जबरदस्ती सस्ते दामो में माल लेना, उन्हें दण्डित करना, कारागृह भेजना, किसानों और व्यापारियों से जबरदस्ती ऋण की प्रतिभूतियां लिखकर लेना इस प्रकार के अत्याचार किये जाते थे। इस वजह से इंग्लैंड की जनता कंपनी प्रशासन की आलोचना करने लगी। 

०३. प्लासी युद्ध के बाद अंग्रेजो का भारत की राजनीती में प्रवेश हुआ और बक्सर के युद्ध के बाद भारत में कंपनी की एक स्थिर सत्ता प्रस्थापित हुई। रक्षा, विदेश नीति, अनुबंध, संधि, आदि अधिकार कंपनी को मिल गए। लेकिन किसी देश का शासन एक व्यापारी कंपनी के पास रहना योग्य नहीं है ऐसा मत इंग्लैंड के राजनीत के बुद्धिजीवियों ने व्यक्त किया। यह कहा जाता है कि व्यापारी कुशल प्रशासक नहीं होते।

०४. कंपनी के कर्मचारियोंने अवैध मार्ग से बड़ी मात्रा में खुद के लिए पैसा जमा किया था। कंपनीके युद्ध नीति के चलते कंपनी की आर्थिक हालत खस्ता हो चुकी थी। इसलिए कंपनीने ब्रिटिश संसद तरफ मदद के लिए हाथ फैलाया। 

०५. १७७२ में संसदने कंपनीके के कार्यों की पूछताछ करने के हेतु ३१ सदस्यों वाली 'प्रवर समिति' और १३ सदस्योंवाली 'गुप्त समिति' की नियुक्ति की। समिति की रिपोर्ट के आधार पर कंपनी को १४ लाख पाउंड राशि ऋण दी गयी। उसी के साथ उसी वक्त १ अक्टूबर १७७३ में 'रेग्युलेटिंग एक्ट' मंजूर किया गया।  



रेग्युलेटिंग एक्ट (नियामक अधिनियम) १७७३
इसका उद्देश्य कंपनी के संगठन और प्रशासन के दोष दूर करके भारत की जनता को सुशासन प्रदान करना था। 

इस एक्ट द्वारा बंगाल गवर्नर को गवर्नर जनरल पद दिया गया। मद्रास और मुम्बई के गवर्नर को बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन रखा गया। बंगाल गवर्नर जनरल को मुम्बई में युद्ध और शांति के विषय में कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया।

गवर्नर जनरल की मदद करने के लिए चार सदस्यीय कार्यकारी मंडल की नियुक्ति की गयी। उन्हें पदमुक्त करने का अधिकार केवल ब्रिटिश सम्राट को ही था। कार्यकारी बोर्ड का फैसला बहुमत के आधार पर लिया जाता था।  जिसमे गवर्नर जनरल को विशेष मत का अधिकार था

वॉरेन हेस्टिंग्ज बंगाल के पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड बनाया गया। और फिलिप फ्रांसिस, क्लेवरिंग, मोनसन, बोरवेल इनकी ५ साल के लिए कार्यकारी मंडल पर नियुक्ति की गयी।
इस अधिनियम द्वारा १७७४ में कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट स्थापित किया गया। इस अदालत को यूरोपीय, कलकत्ता के नागरिक, कंपनी के अपने कर्मचारियों के दावों का निर्णय लेने के लिए स्थापित किया गया था। गवर्नर जनरल और कार्यकारी मंडल सदस्य के अलावा कंपनी और सम्राट की सेवा में रहनेवाले सभी कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार अदालत को दिया गया। 

इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश और अन्य तीन न्यायाधीशों की रचना की गयी। अदालत को प्राथमिक और अपील अधिकार दिया गया। निर्णय देने के लिए जूरी विधि बनाया गया। कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालयके पहले मुख्य न्यायाधीश 'एलिजा इम्पे' ये थे और अन्य दो चेम्बर्स लिमेस्तर और  हाइड थे.

इस अधिनियम के तहत कंपनी के कर्मचारियों पर निजी व्यवसाय करने पर और उपहार और रिश्वत स्वीकारने पर प्रतिबंध लगायाया गया। प्रति २० साल के बाद इस विशेषाधिकार का नवीनीकरण किया जाये ऐसा प्रावधान इस अधिनियम में था।  

ब्रिटिश सरकार के 'कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर'के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त किया गया। कंपनी डायरेक्टर्स का कार्यभार संसदने नियुक्त किए हुए 'निगरानी समिति' के अधीन रहेगा ऐसा निर्णय लिया गया। कंपनी के राजस्व लेनदेनसंबंधी की जानकारी वित्त विभाग को और सैन्य और नागरिकसंबंधी जानकारी गृह सचिव को पहुँचाना अनिवार्य किया गया। 

निदेशक मंडल की टर्म १ साल से ४ साल तक बढाई गई। निदेशकों की संख्या  २४ की गई। उनमे से ६ निदेशक हर साल सेवानिवृत्त होते और उतनेही नए निदेशकोंकी नियुक्ति की जाती।

१७८० में ब्रिटिश संसदने एक कानून पारित कर दिया। जिसके अनुसार गवर्नर जनरल को मुख्य सेनापति का अधिकार दिया गया। लॉर्ड कॉर्नवालिस को गवर्नर जनरल बनाने के हेतु या कानून बनाया गया था। 



इस अधिनियम की विशेषताएं
भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी के कार्यों को नियंत्रित और नियमित करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया यह पहला प्रयत्न था। इस द्वारा पहली बार कंपनी की प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों को मान्यता दी गयी।

इस अधिनियम द्वारा भारत में पहली बार केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गई।

११ साल के बाद १७८४ में पिट्स इंडिया एक्ट के लागू होने के बाद रेग्युलेटिंग एक्ट ख़त्म हो गया।

लॉर्ड वॉरेन हेस्टिंग्ज इस एकमात्र गवर्नर जनरल के कार्यकाल में यह अधिनियम कार्यान्वित था। 



एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट (१७८१)
रेग्युलेटिंग एक्ट में प्रशासन के अधिकार काउन्सिल को सौंप दिए थे। इससे गवर्नर जनरल की हालत काफी कमजोर थी। गवर्नर जनरल, काउन्सिल और न्यायालय इनके अधिकार में अस्पष्टता थी। प्रांतीय गवर्नर ने परिस्थितियों नुसार गवर्नर जनरल के आदेश से इनकार कर दिया था। जिसकी वजह से सर्वोच्च सत्ता का कोई मतलब ही नहीं था। इसलिए रेग्युलेटिंग एक्ट का संशोधन कानून मंजूर किया गया। 

कंपनी के अधिकारीयो को शासकीय कार्यों के लिए सुप्रीम कोर्ट की सीमा के बाहर किया गया। सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित किया गया। कलकत्ता के सभी निवासियों पर सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार स्थापित किया गया।

प्रतिवादी (Defendant) के मामले में उनका निजी कानून लागू करने का आदेश दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने नियमों और आदेशों को लागू करते समय भारतीय लोगोंके धार्मिक विरासत और सामाजिक रीति-रिवाजों का सम्मान करने का आदेश दिया गया।

इन सब घटनाओ के बीच इंग्लैंड संसद में एक बिल लाया गया।  जिसमे भारत में कंपनी की सत्ता ब्रिटिश संसदद्वारा हथियाने संबंधी प्रावधान थे।  यह विधेयक हॉउस ऑफ़ लॉर्ड में नामंजूर किया गया। इसकी वजह से ब्रिटेन की लॉर्ड फॉक्स सरकार को पदत्याग करना पड़ा।  भारतीय कारणवश ब्रिटेनमें सरकार गिरने की यह पहली और आखरी घटना थी। 

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