भूगोल शब्द के जनक ईरेस्टोस्थेनिस हैं।
सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं।
किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल।
हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके १६६ ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं।
सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है।
सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है।
कुछ उल्लेखनीय अपवादों को छोड़ कर, मानवता को सौर मण्डल का अस्तित्व जानने में कई हजार वर्ष लग गए। लोग सोचते थे कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का स्थिर केंद्र है और आकाश में घूमने वाली दिव्य या वायव्य वस्तुओं से स्पष्ट रूप में अलग है।
लेकिन १४० इ. में क्लाडियस टॉलमी ने बताया ( जेओसेंट्रिक अवधारणा के अनुसार ) की पृथ्वी ब्रम्हांड के केंद्र में है और सारे गृह पिंड इसकी परिकृमा करते हैं लेकिन कॉपरनिकस ने १५४३ में बताया की सूर्य ब्रम्हांड के केंद्र में है और सारे गृह पिंड इसकी परिकृमा करते हैं।
सौरमंडल सूर्य और उसकी परिक्रमा करते ग्रह, क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओं से बना है। इसके केन्द्र में सूर्य है और सबसे बाहरी सीमा पर वरुण (ग्रह) है। वरुण के परे यम (प्लुटो) जैसे बौने ग्रहो के अतिरिक्त धूमकेतु भी आते है।
सूर्य
सूर्य की निर्मिति ४६० वर्ष पूर्व हुयी हैं।
पृथ्वी की निर्मिति ४५० वर्ष पूर्व हुयी हैं।
पृथ्वी और सूर्य के बीच का अंतर - (१४ करोड़ ९० लाख किमी)
सूर्य की किरणे पृथ्वीपर पहुँचने में ८.२ मिनट इतना समय लगता है।
सूर्य का व्यास १३ लाख ९२ हजार किमी है।
सूर्य की सतह का तापमान - ५७६० डिग्री सेल्सियस
सूर्य का अंदरूनी तापमान - १.५ से २ करोड़ डिग्री सेल्सियस
२००८ में भारतने सूर्य के अध्ययन के लिए सबसे पहले 'आदित्य' यान भेजा था।
केंद्रीय सम्मिलनद्वारा सूर्य ऊर्जा पैदा करता है।
सूर्य का रासायनिक विश्लेषण (७१% हायड्रोजन, २६.५% हीलियम, २.५% अन्य)
ग्रह
ग्रहीय मण्डल उसी प्रक्रिया से बनते हैं जिस से तारों की सृष्टि होती है।
आधुनिक खगोलशास्त्र में माना जाता है के जब अंतरिक्ष में कोई अणुओं का बादल गुरुत्वाकर्षण से सिमटने लगता है तो वह किसी तारे के इर्द-गिर्द एक आदिग्रह चक्र (प्रोटोप्लैनॅटेरी डिस्क) बना देता है।
पहले अणु जमा होकर धूल के कण बना देते हैं, फिर कण मिलकर डले बन जाते हैं। गुरुत्वाकर्षण के लगातार प्रभाव से, इन डलों में टकराव और जमावड़े होते रहते हैं और धीरे-धीरे मलबे के बड़े-बड़े टुकड़े बन जाते हैं जो वक़्त से साथ-साथ ग्रहों, उपग्रहों और अलग वस्तुओं का रूप धारण कर लेते हैं।
जो वस्तुएँ बड़ी होती हैं उनका गुरुत्वाकर्षण ताक़तवर होता है और वे अपने-आप को सिकोड़कर एक गोले का आकार धारण कर लेती हैं।
किसी ग्रहीय मण्डल के सृजन के पहले चरणों में यह ग्रह और उपग्रह कभी-कभी आपस में टकरा भी जाते हैं, जिस से कभी तो वह खंडित हो जाते हैं और कभी जुड़कर और बड़े हो जाते हैं।
माना जाता है के हमारी पृथ्वी के साथ एक मंगल ग्रह जितनी बड़ी वस्तु का भयंकर टकराव हुआ, जिस से पृथ्वी का बड़ा सा सतही हिस्सा उखाड़कर पृथ्वी के इर्द-गिर्द परिक्रमा ग्रहपथ में चला गया और धीरे-धीरे जुड़कर हमारा चन्द्रमा बन गया।
ग्रहों के क्रम:
०१. बुध
०२. शुक्र
०३. पृथ्वी
०४. मंगल
०५. गुरु
०६. शनि
०७. युरेनस
०८. नेपच्यून
२० अगस्त २००६ इस दिन झेक प्रजासत्ताक के प्राग शहर में ५७वी खगोलीय परिषद का आयोजन किया गया था। इस परिषद में प्लूटो का गृहपद छीन लिया गया। प्लूटो को अब १३४३४० यह क्रमांक दिया गया है।
मंगल और गुरु ग्रहके बीच क्षुद्र ग्रह घेरा है। क्षुद्रग्रह के घेरे के अंदर के ग्रहों को आतंरिक ग्रह कहा जाता है। आतंरिक ग्रह स्थायरूप हैं। बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल आतंरिक ग्रह हैं।
हाल ही में, अंधा से ग्रह पृथ्वी क्षुद्रग्रह के साथ antargraha हैं। Antargraha कवर फार्म के लिए मुश्किल है। उदाहरण के लिए। बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल।
शुक्र ग्रह पृथ्वी के सबसे करीब है।
शुक्र ग्रह सबसे तेजस्वी ग्रह है।
शुक्र ग्रह को पृथ्वी की बहन कहा जाता है।
नेपच्यून ग्रह को परिभ्रमण में सबसे अधिक समय लगता है। (१६४ वर्ष)
बुध ग्रह को परिभ्रमण में सबसे कम समय लगता है। (८८ दिन)
गुरु ग्रह को परिवलन में सबसे कम समय लगता है। (९.९ घंटे)
शुक्र ग्रह को परिवलन में सबसे अधिक समय लगता है। (२४३ दिन)
पृथ्वी का परिभ्रमण - ३६५ दिन ५ घंटे ४८ मिनट ४६ सेकंड।
पृथ्वी का पेरिवलन - २३ घंटे ५६ मिनट ४ सेकंड।
पृथ्वी का एक उपग्रह है। मंगल के दो उपग्रह है। सबसे ज्यादा उपग्रह गुरु के पास है (६१ उपग्रह).
बुध और शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है।
धूमकेतु और उल्का
हैले का धूमकेतु सबमे पहली बार १९१० में देखा गया था।
हर ७६ साल के बाद हैले का धूमकेतू दिखाई देता है। इससे पहले वह १९८६ में दिखाई दिया था।
महाराष्ट्र के बुलढाना में लोनार झील बनी हुई है। यह झील पृथ्वी पर उल्का गिरने से बनी हुई है।
आकाशगंगा
आकाशगंगा का मतलब Galaxy.
एक आकाशगंगा में १० से २० हजार करोड़ सितारे होते हैं।
ब्रह्माण्ड में कुल २० लाख करोड़ आकाशगंगा मौजूद है।
हमारी आकाशगंगा से सबसे नजदीकी आकाशगंगा M31 है. इसे Andrimul Nebula यह नाम दिया गया है।
सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं।
किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल।
हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके १६६ ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं।
सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है।
सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है।
कुछ उल्लेखनीय अपवादों को छोड़ कर, मानवता को सौर मण्डल का अस्तित्व जानने में कई हजार वर्ष लग गए। लोग सोचते थे कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का स्थिर केंद्र है और आकाश में घूमने वाली दिव्य या वायव्य वस्तुओं से स्पष्ट रूप में अलग है।
लेकिन १४० इ. में क्लाडियस टॉलमी ने बताया ( जेओसेंट्रिक अवधारणा के अनुसार ) की पृथ्वी ब्रम्हांड के केंद्र में है और सारे गृह पिंड इसकी परिकृमा करते हैं लेकिन कॉपरनिकस ने १५४३ में बताया की सूर्य ब्रम्हांड के केंद्र में है और सारे गृह पिंड इसकी परिकृमा करते हैं।
सौरमंडल सूर्य और उसकी परिक्रमा करते ग्रह, क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओं से बना है। इसके केन्द्र में सूर्य है और सबसे बाहरी सीमा पर वरुण (ग्रह) है। वरुण के परे यम (प्लुटो) जैसे बौने ग्रहो के अतिरिक्त धूमकेतु भी आते है।
सूर्य
सूर्य की निर्मिति ४६० वर्ष पूर्व हुयी हैं।
पृथ्वी की निर्मिति ४५० वर्ष पूर्व हुयी हैं।
पृथ्वी और सूर्य के बीच का अंतर - (१४ करोड़ ९० लाख किमी)
सूर्य की किरणे पृथ्वीपर पहुँचने में ८.२ मिनट इतना समय लगता है।
सूर्य का व्यास १३ लाख ९२ हजार किमी है।
सूर्य की सतह का तापमान - ५७६० डिग्री सेल्सियस
सूर्य का अंदरूनी तापमान - १.५ से २ करोड़ डिग्री सेल्सियस
२००८ में भारतने सूर्य के अध्ययन के लिए सबसे पहले 'आदित्य' यान भेजा था।
केंद्रीय सम्मिलनद्वारा सूर्य ऊर्जा पैदा करता है।
सूर्य का रासायनिक विश्लेषण (७१% हायड्रोजन, २६.५% हीलियम, २.५% अन्य)
ग्रह
ग्रहीय मण्डल उसी प्रक्रिया से बनते हैं जिस से तारों की सृष्टि होती है।
आधुनिक खगोलशास्त्र में माना जाता है के जब अंतरिक्ष में कोई अणुओं का बादल गुरुत्वाकर्षण से सिमटने लगता है तो वह किसी तारे के इर्द-गिर्द एक आदिग्रह चक्र (प्रोटोप्लैनॅटेरी डिस्क) बना देता है।
पहले अणु जमा होकर धूल के कण बना देते हैं, फिर कण मिलकर डले बन जाते हैं। गुरुत्वाकर्षण के लगातार प्रभाव से, इन डलों में टकराव और जमावड़े होते रहते हैं और धीरे-धीरे मलबे के बड़े-बड़े टुकड़े बन जाते हैं जो वक़्त से साथ-साथ ग्रहों, उपग्रहों और अलग वस्तुओं का रूप धारण कर लेते हैं।
जो वस्तुएँ बड़ी होती हैं उनका गुरुत्वाकर्षण ताक़तवर होता है और वे अपने-आप को सिकोड़कर एक गोले का आकार धारण कर लेती हैं।
किसी ग्रहीय मण्डल के सृजन के पहले चरणों में यह ग्रह और उपग्रह कभी-कभी आपस में टकरा भी जाते हैं, जिस से कभी तो वह खंडित हो जाते हैं और कभी जुड़कर और बड़े हो जाते हैं।
माना जाता है के हमारी पृथ्वी के साथ एक मंगल ग्रह जितनी बड़ी वस्तु का भयंकर टकराव हुआ, जिस से पृथ्वी का बड़ा सा सतही हिस्सा उखाड़कर पृथ्वी के इर्द-गिर्द परिक्रमा ग्रहपथ में चला गया और धीरे-धीरे जुड़कर हमारा चन्द्रमा बन गया।
ग्रहों के क्रम:
०१. बुध
०२. शुक्र
०३. पृथ्वी
०४. मंगल
०५. गुरु
०६. शनि
०७. युरेनस
०८. नेपच्यून
२० अगस्त २००६ इस दिन झेक प्रजासत्ताक के प्राग शहर में ५७वी खगोलीय परिषद का आयोजन किया गया था। इस परिषद में प्लूटो का गृहपद छीन लिया गया। प्लूटो को अब १३४३४० यह क्रमांक दिया गया है।
मंगल और गुरु ग्रहके बीच क्षुद्र ग्रह घेरा है। क्षुद्रग्रह के घेरे के अंदर के ग्रहों को आतंरिक ग्रह कहा जाता है। आतंरिक ग्रह स्थायरूप हैं। बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल आतंरिक ग्रह हैं।
हाल ही में, अंधा से ग्रह पृथ्वी क्षुद्रग्रह के साथ antargraha हैं। Antargraha कवर फार्म के लिए मुश्किल है। उदाहरण के लिए। बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल।
शुक्र ग्रह पृथ्वी के सबसे करीब है।
शुक्र ग्रह सबसे तेजस्वी ग्रह है।
शुक्र ग्रह को पृथ्वी की बहन कहा जाता है।
नेपच्यून ग्रह को परिभ्रमण में सबसे अधिक समय लगता है। (१६४ वर्ष)
बुध ग्रह को परिभ्रमण में सबसे कम समय लगता है। (८८ दिन)
गुरु ग्रह को परिवलन में सबसे कम समय लगता है। (९.९ घंटे)
शुक्र ग्रह को परिवलन में सबसे अधिक समय लगता है। (२४३ दिन)
पृथ्वी का परिभ्रमण - ३६५ दिन ५ घंटे ४८ मिनट ४६ सेकंड।
पृथ्वी का पेरिवलन - २३ घंटे ५६ मिनट ४ सेकंड।
पृथ्वी का एक उपग्रह है। मंगल के दो उपग्रह है। सबसे ज्यादा उपग्रह गुरु के पास है (६१ उपग्रह).
बुध और शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है।
धूमकेतु और उल्का
हैले का धूमकेतु सबमे पहली बार १९१० में देखा गया था।
हर ७६ साल के बाद हैले का धूमकेतू दिखाई देता है। इससे पहले वह १९८६ में दिखाई दिया था।
महाराष्ट्र के बुलढाना में लोनार झील बनी हुई है। यह झील पृथ्वी पर उल्का गिरने से बनी हुई है।
आकाशगंगा
आकाशगंगा का मतलब Galaxy.
एक आकाशगंगा में १० से २० हजार करोड़ सितारे होते हैं।
ब्रह्माण्ड में कुल २० लाख करोड़ आकाशगंगा मौजूद है।
हमारी आकाशगंगा से सबसे नजदीकी आकाशगंगा M31 है. इसे Andrimul Nebula यह नाम दिया गया है।