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Friday, 21 July 2017

सिंधु सभ्यता - भाग ३

20:23
कला 
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों में कला के प्रति स्पष्ट अभिरुचि दिखायी देती है। 

हड़प्पा सभ्यता की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ हैं- उनकी मुहरें, अब तक लगभग 2000 मुहरें प्राप्त हुई हैं। इनमे से अधिकांश मुहरें, लगभग 500, मोहनजोदड़ो से मिली हैं। मुहरों के निर्माण में सेलखड़ी का प्रयोग किया गया है। 
वर्गाकार मुद्राएं सर्वाधिक प्रचलित थीं। 

अधिकांश मुहरों पर लघु लेखों के साथ साथएक सिंगी सांड, भैंस, बाघ, बकरी और हाथी की आकृतियाँ खोदी गयी हैं। सैन्धव मुहरे बेलनाकार, आयताकार एवं वृत्ताकार हैं। 


इस काल में बने मृदभांड भी कला की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। मृदभांडों पर आम तौर से वृत्त या वृक्ष की आकृतियाँ भी दिखाई देती हैं। ये मृदभांड चिकने और चमकीले होते थे। मृदभांडों पर लाल एवं काले रंग का प्रयोग किया गया है। 

सिन्धु सभ्यता में भारी संख्या में आग में पकी लघु मुर्तिया मिली हैं, जिन्हें 'टेराकोटा फिगरिन' कहा जाता है। इनका प्रयोग या तो खिलौनों के रूप में या तो पूज्य प्रतिमाओं के रूप में होता था। 


इस काल का शिल्प काफी विकसित था। तांबे के साथ टिन मिलाकर कांसा तैयार किया जाता था।

अन्य जानकारी 
प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह यहां के लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था। हड़प्पाई लिपि का पहला नमूना 1853 ईस्वी में मिला था और 1923 में पूरी लिपि प्रकाश में आई परन्तु अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है।  सिन्धु सभ्यता की लिपि दायें से बाएं लिखी जाती थी। इस लिपि में 700 चिन्ह अक्षरों में से 400 के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है।

व्यापार के लिए उन्हें माप तौल की आवश्यकता हुई और उन्होनें इसका प्रयोग भी किया। 

यह सभ्यता मुख्यतः 2500 ई.पू. से 1800 ई. पू. तक रही। यह सभ्यता अपने अंतिम चरण में ह्वासोन्मुख थी।

मोहनजोदड़ो (Mohenjo Daro) नगर से जो मानव प्रस्तर मूर्तियां मिली हैं, उसमें सेदाढ़ी युक्त सिर विशेष उल्लेखनीय हैं।

मोहनजोदड़ो ((Mohenjo Daro)) के अन्तिम चरण से नगर क्षेत्र के अन्दर मकानों तथा सार्वजनिक मार्गो पर 42 कंकाल अस्त-व्यस्त दशा में पड़े हुए मिले हैं।

इसके अतिरिक्त मोहनजोदाड़ो से लगभग 1398 मुहरें (मुद्राएँ) प्राप्त हुयी हैं जो कुल लेखन सामग्री का 56.67 प्रतिशत अंश है।

पत्थर के बने मूर्तियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शैलखड़ी से बना 19 सेमी. लम्बा 'पुरोहित' का धड़ है।

मोहनजोदड़ो की एक मुद्रा पर एक आकृति है जिसमें आधा भाग 'मानव' का है आधा भाग 'बाघ' का है। एक सिलबट्टा तथा मिट्टी का तराजू भी मिला है। 
सिंधु सभ्यता प्रमुख नगर एवं उनके शोधकर्ता
नगर नामखोजकर्ताखोजवर्षनदीकिनारा
हड़प्पामाधोस्वरुप वत्स
दयाराम साहनी
१९२१ रावी नदी
मोहेंजोदड़ोराखालदास बॅनर्जी१९२२सिंधु नदी
रोपड़यज्ञदत्त शर्मा१९५३सतलज नदी
कालीबंगाब्रजवासी लाल
अमलानंद घोष
१९५३घग्घर नदी
लोथलए. रंगनाथ राव१९५४भोगवा नदी
चन्हुदडोएन गोपाल मुजुमदार१९३१सिंधु नदी
सुरकोटड़ाजगपति जोशी१९६४
बनावलीरविंद्रसिंग बिष्ट१९७३
आलमगीरपुरयज्ञदत्त शर्मा१९५८हिंडन नदी
रंगपुरमाधोस्वरुप वत्स
रंगनाथ राव
१९३१ - १९५३मदर नदी
कोटदीजीफजल अहमद खान१९५३सिंधु नदी
सुत्कागेनडोरऑरेल स्टाइन
जॉर्ज एफ डेल्स
१९२७दाश्त नदी
धौलावीराजे.पी. जोशी1967
दैमाबादआर. एस. विष्ट1990`प्रवरा नदी
देसलपुरके. वी. सुन्दराजन1964
भगवानपुराजे.पी. जोशी
सरस्वती नदी
बालाकोटजॉर्ज एफ डेल्स१९७९अरब सागर


हड़प्पा सभ्यता में आयात होने वाली वस्तुएं
वस्तुएंस्थल (प्रदेश)
टिनअफगानिस्तान और ईरान से
चांदीअफगानिस्तान और ईरान से
सीसाअफगानिस्तान, राजस्थान और ईरान से
सेल खड़ीगुजरात, राजस्थान तथा बलूचिस्तान से
सोनाईरान से
तांबाबलूचिस्तान और राजस्थान के खेतड़ी से
लाजवर्द मणिमेसोपोटामिया



सिन्धु सभ्यता से सम्बंधित महत्वपूर्ण वस्तुएं
महत्वपूर्ण वस्तुएंप्राप्ति स्थल
तांबे का पैमानाहड़प्पा
सबसे बड़ी ईंटमोहनजोदड़ो
केश प्रसाधन (कंघी)हड़प्पा
वक्राकार ईंटेंचन्हूदड़ो
जुटे खेत के साक्ष्यकालीबंगा
मक्का बनाने का कारखानाचन्हूदड़ो, लोथल
फारस की मुद्रालोथल
बिल्ली के पैरों के अंकन वाली ईंटेचन्हूदड़ो
युगल शवाधनलोथल
मिटटी का हलबनवाली
चालाक लोमड़ी के अंकन वाली मुहरलोथल
घोड़े की अस्थियांसुरकोटदा
हाथी दांत का पैमानालोथल
आटा पिसने की चक्कीलोथल
ममी के प्रमाणलोथल
चावल के साक्ष्यलोथल, रंगपुर
सीप से बना पैमानामोहनजोदड़ों
कांसे से बनी नर्तकी की प्रतिमामोहनजोदड़ों

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सिंधु सभ्यता - भाग २

20:21
नगर निर्माण योजना 
इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना। 

हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहां शासक वर्ग का परिवार रहता था। 

प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे। 

मोहन जोदड़ो का अब तक का सबसे प्रसिद्ध स्थल है विशाल सार्वजनिक स्नानागार, जिसका जलाशय दुर्ग के टीले में है। यह ईंटो के स्थापत्य का एक सुन्दर उदाहरण है। 
यह 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। दोनो सिरों पर तल तक जाने की सीढ़ियां लगी हैं। बगल में कपड़े बदलने के कमरे हैं। स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है। पास के कमरे में एक बड़ा सा कुंआ है जिसका पानी निकाल कर होज़ में डाला जाता था। हौज़ के कोने में एक निर्गम (Outlet) है जिससे पानी बहकर नाले में जाता था। 

मोहन जोदड़ो की सबसे बड़ा संरचना है - अनाज रखने का कोठार, जो 45.71 मीटर लंबा और 15.23 मीटर चौड़ा है। 

हड़प्पा के दुर्ग में छः कोठार मिले हैं जो ईंटों के चबूतरे पर दो पांतों में खड़े हैं। हर एक कोठार 15.23 मी. लंबा तथा 6.09 मी. चौड़ा है और नदी के किनारे से कुछ एक मीटर की दूरी पर है।

हड़प्पा संस्कृति के नगरों में ईंट का इस्तेमाल एक विशेष बात है, क्योंकि इसी समय के मिस्र के भवनों में धूप में सूखी ईंट का ही प्रयोग हुआ था। समकालीन मेसोपेटामिया में पक्की ईंटों का प्रयोग मिलता तो है पर इतने बड़े पैमाने पर नहीं जितना सिन्धु घाटी सभ्यता में। 

मोहन जोदड़ो की जल निकास प्रणाली अद्भुत थी। लगभग हर नगर के हर छोटे या बड़े मकान में प्रांगण और स्नानागार होता था। कालीबंगां के अनेक घरों में अपने-अपने कुएं थे। घरों का पानी बहकर सड़कों तक आता जहां इनके नीचे नालियां बनी थीं। नालियों के निर्माण में मुख्यतः ईंटों और मोर्टार का प्रयोग किया जाता था, कहीं कहीं पर चूने और जिप्सम का भी प्रयोग मिलता है। 

नगर की पश्चिमी टीले पर सम्भवतः सुरक्षा हेतु एक 'दुर्ग' का निर्माण हुआ था जिसकी उत्तर से दक्षिण की ओर लम्बाई 460 गज एवं पूर्व से पश्चिम की ओर लम्बाई 215 गज थी। ह्वीलर द्वारा इस टीले को 'माउन्ट ए-बी' नाम प्रदान किया गया है। 


सिंधु घाटी प्रदेश में हुई खुदाई कुछ महत्त्वपूर्ण ध्वंसावशेषों के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा की खुदाई में मिले अवशेषों में महत्त्वपूर्ण थे। इनमे दुर्ग, रक्षा-प्राचीर, निवासगृह, चबूतरे, अन्नागार आदि विशेष इमारते है।



कृषि एवं पशुपालन
आज के मुकाबले सिन्धु प्रदेश पूर्व में बहुत उपजाऊ था। 

सिन्धु की उर्वरता का एक कारण सिन्धु नदी से प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ भी थी। गाँव की रक्षा के लिए खड़ी पकी ईंट की दीवार इंगित करती है बाढ़ हर साल आती थी। 

यहां के लोग बाढ़ के उतर जाने के बाद नवंबर के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ के आने से पहले अप्रैल के महीने में गेहूँ और जौ की फ़सल काट लेते थे। 

सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, राई, मटर, ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे। इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई। इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिन्डन (Sindon) कहने लगे। 

हड़प्पा एक कृषि प्रधान संस्कृति थी पर यहां के लोग पशुपालन भी करते थे। बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पाला जाता था। 

प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है की मोहनजोदड़ों की जनसँख्या में प्रोटो ऑस्ट्रेलॅायड, भूमध्यसागरीय, अल्पाइन, मंगोलॅायड यह चार प्रजातियाँ शामिल थीं। अधिकांश विद्वान् इस मत से सहमत है कि द्रविड़ ही सिन्धु सभ्यता के निर्माता थे। 

इस सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन का प्रयोग करते थे। आभूषणों का प्रयोग स्त्री और पुरुष दोनों ही करते थे। आभूषणों में चूड़ियाँ, कर्णफूल, हार, अंगूठी, मनके आदि का प्रयोग किया जाता था



उद्योग एवं व्यापार 
यहाँ के नगरों में अनेक व्यवसाय-धन्धे प्रचलित थे। मिट्टी के बर्तन बनाने में ये लोग बहुत कुशल थे। मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते थे। कपड़ा बनाने का व्यवसाय उन्नत अवस्था में था। जौहरी का काम भी उन्नत अवस्था में था। मनके और ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय था, लेकिन इन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था।
यहां के लोग आपस में पत्थर, धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे।

ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) से व्यापार करते थे। उन्होंने उत्तरी अफ़गानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश स्थापित किया जिससे उन्हें व्यापार में सहूलियत होती थी। 

बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार सम्बंध था। मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापार के प्रमाण मिले हैं। 

यद्यपि इस युग के लोग पत्थरों के बहुत सारे औजार तथा उपकरण प्रयोग करते थे पर वे कांसे के निर्माण से भली भींति परिचित थे। तांबे तथा टिन मिलाकर धातुशिल्पी कांस्य का निर्माण करते थे। 

सूती कपड़े भी बुने जाते थे। लोग नाव भी बनाते थे। मुद्रा निर्माण, मूर्ति का निर्माण के सात बरतन बनाना भी प्रमुख शिल्प था।



धार्मिक जीवन 
हड़प्पा में पकी मिट्टी की स्त्री मूर्तिकाएं भारी संख्या में मिली हैं। एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है। यहां के लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिस तरह मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइसिस् की। 

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने शवों को जलाया करते थे, मोहन जोदड़ो और हड़प्पा जैसे नगरों की आबादी करीब 50 हज़ार थी पर फिर भी वहाँ से केवल 100 के आसपास ही कब्रे मिली है जो इस बात की और इशारा करता है वे शव जलाते थे। 

सिंधु घाटी में आज तक कोई मंदिर का अवशेष नहीं मिला, मार्शल आदि कई इतिहासकार मानते है की सिंधु घाटी के लोग अपने घरो में, खेतो में या नदी किनारे पूजा किया करते थे। 
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सिंधु सभ्यता - भाग १

20:15
सिंधु घाटी सभ्यता जिसे इंडस वैली सिविलाइज़ेशन भी कहते हैं विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। (३३०० ईसापूर्व से १७०० ईसापूर्व तक) 

यह हड़प्पा सभ्यता और 'सिंधु-सरस्वती सभ्यता' के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। 

यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की हुई। मिस्र की सभ्यता के 7,000 ईसा पूर्व से 3,000 ईसा पूर्व तक रहने के प्रमाण मिलते हैं, जबकि मेसोपोटामिया की सभ्यता 6500 ईसा पूर्व से 3,100 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी।

20वीं सदी के आरंभ तक इतिहासकारों एवं पुरातत्ववेत्ताओं ने यह धारणा थी की वैदिक सभ्यता ही भारत की प्राचीनतम सभ्यता है, किन्तु 1921 और 1922 में क्रमशः हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नमक स्थलों की खुदाई से यह स्पष्ट हो गया की वैदिक सभ्यता से पूर्व भी भारत में एक अन्य सभ्यता भी अस्तित्व में थी। 

मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर २०१४ में भिर्दाना को  सिंधु घाटी सभ्यता का अबतक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया। 

1826 चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 

जब 1856 ई. में ‘जॉन विलियम ब्रन्टम’ ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया।

बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में एलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की।

1904 में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग (ASI) का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। 

इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक 'सर जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 में इस स्थान हड़प्पा की खुदाई करवायी। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया। 

लगभग एक वर्ष बाद 1922 में 'श्री राखल दास बॅनर्जी' के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के 'लरकाना' ज़िले के मोहनजोदाड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। 

इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने क उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवतः यह सभ्यता सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित है, अतः इस सभ्यता का नाम 'सिधु घाटी की सभ्यता' (Indus Valley Civilization) रखा गया। 

सबसे पहले 'हड़प्पा' नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण 'सिन्धु सभ्यता' का नाम 'हड़प्पा सभ्यता' पड़ा। पर कालान्तर में पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियां बतलाया।

प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है। 

सिन्धु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें से ९२५ केन्द्र भारत में है। ८० प्रतिशत स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। अभी तक कुल खोजों में से ३ प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है।

इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम दिया, क्योंकि यह क्षेत्र सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैं, पर बाद में रोपड़, लोथल, कालीबंगा, वनमाली, रंगापुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे। 

अतः कई इतिहासकार इस सभ्यता का प्रमुख केन्द्र हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को 'हड़प्पा सभ्यता' नाम देना अधिक उचित मानते हैं। 

भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल ने 1924 में सिन्धु सभ्यता के बारे में तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।



हड़प्पा संस्कृति के स्थल 
इस परिपक्व सभ्यता के केन्द्र-स्थल पंजाब तथा सिन्ध में था। तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ। 
हड़प्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब, सिन्ध और बलूचिस्तान के ही नहीं, बल्कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमान्त भाग भी थे। 

इसका फैलाव उत्तर में रहमानढेरी से लेकर दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट्र) तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट के सुत्कागेनडोर से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ और कुरुक्षेत्र तक था। प्रारंभिक विस्तार जो प्राप्त था उसमें सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार था। 

अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस संस्कृति के कुल 1000 स्थलों का पता चल चुका है। इनमें से ६ को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है। ये हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ों, लोथल, कालीबंगा, बणावली है। इनमें से दो नगर बहुत ही महत्वपूर्ण हैं - पंजाब का हड़प्पा तथा सिन्ध का मोहें जो दड़ो। दोनो ही स्थल वर्तमान पाकिस्तान में हैं। 

दोनो एक दूसरे से 483 किमी दूर थे और सिंधु नदी द्वारा जुड़े हुए थे। तीसरा नगर मोहें जो दड़ो से 130 किमी दक्षिण में चन्हुदड़ो स्थल पर था तो चौथा नगर गुजरात के खंभात की खाड़ी के उपर लोथल नामक स्थल पर। 

इसके अतिरिक्त राजस्थान के उत्तरी भाग में कालीबंगा  तथा हरियाणा के हिसार जिले का बनावली। इन सभी स्थलों पर परिपक्व तथा उन्नत हड़प्पा संस्कृति के दर्शन होते हैं।
विभिन्न जगहों पर  सिंधु घाटी सभ्यता के शहर
बलूचिस्तान
मकरान तट, सुत्कागेनडोर, सुत्काकोह, बालाकोट, डावरकोट 

सिंध
मोहनजोदड़ों, चन्हूदड़ों, जूडीरोजोदड़ों, आमरी, कोटदीजी, अलीमुराद, रहमानढेरी, राणाधुडई इत्यादि।


पश्चिमी पंजाब 
डेरा इस्माइलखान, जलीलपुर, रहमानढेरी, गुमला, चक-पुरवानस्याल

गुजरात
लोथल, सुरकोतदा, रंगपुर, रोजदी, मालवड, देसलपुर, धोलावीरा, भगतराव, पाडरी, प्रभास-पाटन, मेघम, वेतेलोद, नागेश्वर, कुन्तासी, शिकारपुर

अफ़ग़ानिस्तान
मुंडीगाक, सोर्तगोई 


हरियाणा

राखीगढ़ी, भिर्दाना, बनावली, कुणाल, मीताथल, सिसवल, वणावली, राखीगढ़, वाड़ा तथा वालू। 

पंजाब
रोपड़, बाड़ा, संघोंल, कोटलानिहंग ख़ान, चक 86 वाड़ा, ढेर-मजरा।

महाराष्ट्र
दायमाबाद

उत्तर प्रदेश 
आलमगीरपुर, रावण उर्फ़ बडागांव, अम्बखेडी

जम्मू कश्मीर

मांडा

राजस्थान

कालीबंगा
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Thursday, 6 April 2017

भारत की जनगणना - २०११

14:55
विश्व जनगणना में भारत का स्थान
विश्व कि जनसंख्या में १७.५% हिस्सा भारत का है। लेकिन विश्व की सतह का केवल २.५% हिस्सा ही भारत में है। 

संयुक्त राष्ट्र के आकलन के अनुसार विश्व की आबादी में २०००-२०१० के दौरान १.२३% के वार्षिक दर से वृद्धि हुई है।  इस अवधी में चीन के आबादी की वृद्धि ०.५३% थी। जबकि २००१-२०११ के दौरान भारत में जनसँख्या की वृद्धि दर १.६४% की रही है। 


वर्ष २०३० तक भारत में विश्व की आबादी के कुल १७.९% आबादी रहेगी।  इस समय भारत चीन से भी आगे निकल जाएगा। 



भारत की जनगणना
जनगणना २०११ में २९ राज्य, ६ संघशासित प्रदेश, ६४० जिले, ५९२४ उपजिले, ७९५३ शहर और ६४०८६७ गाँव शामिल है। जनगणना २००१ में ५९३ जिले, ५४६३ उपजिले, ५१६१ शहर और ६३८५८८ गाँव शामिल थे।इस प्रकार २००१ की तुलना में ४७ जिलो, ४६१ उपजिला, २७७४ शहर तथा २२७९ गांवों की वृद्धि २०११ की जनगणना में हुई थी। 

उत्तर प्रदेश (७१), मध्य प्रदेश (५०), बिहार (३८), महाराष्ट्र (३५), राजस्थान (३३) इन पाँच राज्यों में २०११ की जनगणना में सबसे ज्यादा जिले थे। 

गोवा (२), त्रिपुरा (४), सिक्किम (४), मेघालय (७), मिजोरम (८) इन पाँच राज्यों में २०११ की जनगणना में सबसे कम जिले थे। 


ग्रामीण और शहरी क्षेत्रोमें भारतीय आबादी की वृद्धि दर क्रमशः १२.१८% तथा ३१.८०% थी। 

जनगणना २०११ अनुसार भारत की आबादी १२१ करोड़ थी।  इसमें ग्रामीण आबादी ८३ करोड़ और शहरी आबादी ३७ करोड़ है। पिछले दशके में  ग्रामीण आबादी में ९.०४ करोड़ की और शहरी आबादी में ९.१ करोड़ की वृद्धि हुई है। 



जनगणना में राज्यों के स्थान
आबादी के दृष्टी से उत्तर प्रदेश (१९९५८१४७७), महाराष्ट्र (११२३७२९७२), बिहार (१०३८०४६३७), पश्चिम बंगाल (९१३४७७३६), आंध्र प्रदेश (८४६६५५३३) इन राज्यो में सबसे अधिक आबादी है। 

लक्षद्वीप (६४४२९), दमन व् दिव (२४२९११), दादरा व् नगर हवेली (३४२८५३), अंदमान व् निकोबार (३७९९४४), सिक्किम (६०७६८८) इन राज्यों में सबसे कम आबादी है। 

देश में ठाणे (महाराष्ट्र) और नार्थ २४ परगना (पश्चिम बंगाल) इन जिलो में सबसे ज्यादा आबादी है।  ठाणे में कुल ११०५४१३१ इतनी आबादी है और नार्थ २४ परगना की कुल आबादी १००८२८५२ है.

देश में दिबांग व्हाली (अरुणाचल प्रदेश) और अंजाब (अरुणाचल प्रदेश) इन जिलो में सबसे कम आबादी है।  दिबांग व्हाली में कुल ७९४८ इतनी आबादी है और अंजाब की कुल आबादी २१०८९ है.

आबादी की वृद्धि दादरा और नगर हवेली (५५.५) और दमन व दीव (५३.५४) इन राज्योंमें सबसे ज्यादा प्रतिशत हुई है। आबादी की वृद्धि नागालैंड (-०.४७) और केरल (४.८६) इन राज्योंमें सबसे कम प्रतिशत हुई है। 

उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा १५.५१ करोड़ ग्रामीण आबादी है।  यह देशके कुल ग्रामीण आबादी के १३.४८% है। प्रतिशतता के दृष्टी से हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा ८९.९६ प्रतिशत आबादी ग्रामीण है। 

देश में उत्तर प्रदेश (१५.५१ करोड़ ), बिहार (९.२० करोड़), पश्चिम बंगाल (६.२२ करोड़) इन राज्यों में सबसे ज्यादा ग्रामीण आबादी है।  सिक्किम (४.५ लाख), मिजोरम (५.२ लाख), गोवा (५.५ लाख) इन राज्यों में सबसे कम ग्रामीण आबादी है। 

महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा ५.०८ करोड़ शहरी आबादी है।  यह देश के कुल शहरी आबादी के १३.४८% है। प्रतिशतता के दृष्टी से दिल्ली में सबसे ज्यादा ९७.५० प्रतिशत आबादी शहरी है। 

देश में महाराष्ट्र (५.०८ करोड़), उत्तर प्रदेश (४.४ करोड़), तमिलनाडु (३.४ करोड़) इन राज्यों में सबसे ज्यादा शहरी आबादी है।  सिक्किम (१.५ लाख), अरुणाचल प्रदेश (३.१ लाख), मिजोरम (५.६ लाख) इन राज्यों में सबसे काम शहरी आबादी है। 



साक्षरता 
जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरों की संख्या ७७.८५ करोड़ है।  इसमें ४९.३० करोड़ शहरी है।

२००१ से २०११ के दशक में २१.७८ करोड़ साक्षरों में वृद्धि हुई है।  

सर्वाधिक साखर लोग उत्तर प्रदेश (८.८४ करोड़) में रहते है। 

सर्वाधिक शहरी साक्षर संख्या महाराष्ट्र (४.०८ करोड़) है। 

भारत में साक्षरता दर ७४.०४% है।  ग्रामीण क्षेत्रो में साक्षरता दर ६८.९१% है।  शहरी क्षेत्रोमें साक्षरता दर ८४.९८% है। 

भारत में पुरुष साक्षरता दर ८२.१४% है तो महिला साक्षरता दर ६५.४६% है। ग्रामीण भारत में पुरुष साक्षरता दर ७८.५७% है तो महिला साक्षरता दर ५८.७५% है। भारत में पुरुष साक्षरता दर ८९.६७% है तो महिला साक्षरता दर ७९.९२% है। 

भारत में केरल (९३.९१%), लक्षद्वीप (९२.२८%), मिजोरम (९१.५८%) इन राज्यो में सबसे ज्यादा साक्षरता दर है।  तो बिहार (६३.८२%), अरुणाचल प्रदेश (६६.९५ %), राजस्थान (६७.०६%) इन राज्यो में सबसे कम साक्षरता दर है। 

भारत में सरछिप(९८.७६%), आइजल (९८.५०%) इन जिलो में सबसे ज्यादा साक्षरता दर है। यह दोनों जिले मिजोरम में है। तो अलीराजपुर (३७.२२%), बीजापुर (४१.५८ %)इन जिलो में सबसे कम साक्षरता दर है। अलीराजपुर मध्यप्रदेश का जिला है। बीजापुर छत्तीसगढ़ का जिला है। 
ग्रामीण क्षेत्र उच्च साक्षरता दर : केरल (९२.९२%)

शहरी क्षेत्र उच्च साक्षरता दर : मिजोरम (९८.१०%)
पुरुष ग्रामीण क्षेत्र उच्च साक्षरता दर : केरल (९५.२९%)
पुरुष शहरी क्षेत्र उच्च साक्षरता दर : मिजोरम (९८.६७%)
महिला ग्रामीण क्षेत्र निम्न साक्षरता दर : राजस्थान (४६.२५%)
महिला शहरी क्षेत्र निम्न साक्षरता दर : जम्मू कश्मीर (७०.१९%)
पुरुष ग्रामीण क्षेत्र निम्न साक्षरता दर :अरुणाचल प्रदेश (६८.७९%)
पुरुष शहरी क्षेत्र निम्न साक्षरता दर : उत्तर प्रदेश  (८१.७५%)

भारत में दिल्ली (११२९७) और चंडीगढ़ (९२५२) इन दो राज्योंमें जनसँख्या सबसे ज्यादा सघनता है।  अरुणाचल प्रदेश (१७) और अंदमान एव निकोबार द्वीपसमूह (४६) में जनसँख्या की सबसे कम सघनता है।

भारत में उत्तर पूर्व दिल्ली (३७३४६) और चेन्नई (२६९०३) इन दो जिलोमें जनसँख्या की सबसे ज्यादा सघनता है।  दिबांग व्हाली (१) और सम्बा (२) इन जिलो में जनसँख्या की सबसे कम सघनता है।



लिंग अनुपात
देश में २००१ में लिंग अनुपात ९३३ था।  २०११ में लिंग अनुपात ९४० हो गया। ग्रामीण क्षेत्रोमें लिंग अनुपात ९४६ से बढ़कर ९४७ हो गया।  शहरी क्षेत्रो में ९०० से बढ़कर ९२६ हो गया।  

केरल में लिंग अनुपात १०८४ है जो भारत में सर्वोच्च है।  केरल का ग्रामीण लिंगानुपात १०७७ तथा शहरो में १०९१ है।  

ग्रामीण क्षेत्रो में चंडीगढ़ (६९१) और शहरी क्षेत्रो में दमन व् दीव (५५०) में न्यूनतम लिंगानुपात है। 

केरल (१०८४) और पुडुचेरी (१०३८) इन दो राज्यों में उच्चतम लिंगानुपात है।  दमन व् दीव (६१८) और दादरा व् नगर हवेली (७७५) इन राज्यो में निम्नतम लिंगानुपात है। 

पुडुचेरी का माहे जिला (११७६) और उत्तराखंड का अल्मोड़ा जिला (११४२) इन दो जिलो में भारत में उच्चतम लिंगानुपात है। दमन व् दीव का दमन जिला (५३३) और जम्मू कश्मीर का लेह लदाख जिला (५८३) इन दो जिलो में भारत में निम्नतम लिंगानुपात है। 

०-६ आयु वर्ष लिंगानुपात को शिशु लिंगानुपात कहा जाता है।  

ग्रामीण क्षेत्रो में दिल्ली (८०९) न्यूनतम और अंदमान निकोबार द्वीपसमूह (९७५) उच्चतम शिशु लिंगानुपात देखा गया है। 

शहरी क्षेत्रो में हरियाणा (८२९) न्यूनतम और नागालैंड (९७९) उच्चतम शिशु लिंगानुपात देखा गया है। 

मिजोरम (९७१) और मेघालय (९७०) इन दो राज्यों में उच्चतम शिशु लिंगानुपात है।  हरियाणा (८३०) और पंजाब (८४६) इन राज्यो में निम्नतम शिशु लिंगानुपात है। 

हिमाचल प्रदेश का जिला लाहुल स्पिति (१०१३) और अरुणाचल प्रदेश का जिला तवांग (१००५) इन दो जिलो में भारत में उच्चतम शिशु लिंगानुपात है। हरियाणा का जिला झज्जर (७७४) और हरियाणा का जिला महेंद्रगढ़ (७७८) इन दो जिलो में भारत में निम्नतम शिशु लिंगानुपात है। 
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Wednesday, 5 April 2017

संविधान मतलब क्या?

14:10
किसी भी लोकतान्त्रिक राज्यतंत्र में शासन प्रबंधन मौलिक कानूनोंद्वारा संचालित होता है, जिसे हम संविधान कहते है। संविधान को सही अर्थोंमें शक्ति की आत्मकथा कहा जा सकता है। 

ब्लैक लॉ शब्दकोष में संविधान को राष्ट्र अथवा राज्य के उन मूल कानूनों के रूप में बताया गया है जो सरकार की संस्थाओं व् व्यवस्थाओं को स्थापित करते है। 

प्रोफ़ेसर स्ट्रांग के अनुसार "संविधान को सिद्धांतो का समुच्चय कहा जा सकता है।  जिसके अनुसार सरकार की शक्ति तथा शासितोंके अधिकार और दोनों के परस्पर सम्बन्ध समायोजित होते हैं। 

संविधान को शक्ति जनता से मिलती है जो वास्तव में सरकारके स्वरुप को विनिर्दिष्ट करता है।  संघ अथवा राज्य को शासित करने के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।  जनता तथा क्षेत्रीय समुदाय से संपर्क बनाये रखने के लिए व्यवस्था प्रदान करता है।  



संविधान के प्रकार
संविधान लिखित तथा अलिखित दोनों प्रकार के होते हैं।  ज्यादातर संविधान लिखित होते हैं। अलिखित संविधान अविकसित एव परिवर्तनशील होते है।  लिखित संविधान किसी विशिष्ट समय पर लिखे संविधान होते है। जो जटिल होते है। 

अलिखित संविधान विकसित होते हैं जो संहिताबद्ध नहीं किये जाते।  इज्राएल, न्युझीलैंड और ब्रिटेन में अलिखित प्रकार के संविधान है।  अलिखित संविधान में, जैसा की  ब्रिटेन में हैं, अनेक चार्टर और संसदीय अधिनियम है जो अपने स्वरूप में लिखित है।  ये अब ब्रिटिश राजनैतिक व्यवस्था का भाग है।  इन्हें समय के साथ लागू किया गया है। 

अलिखित संविधान समय की आवश्यकताद्वारे परिवर्तित किये जा सकते है।  इनमे संशोधन करने का तरीका बहुत ही सरल होता है।  जैसा की साधारण बहुमत से भी संविधान में संशोधन किया जा सकता है।  ऐसे संविधान को परिवर्तनशील संविधान अथवा लचीला संविधान कहा जाता है।

लिखित संविधान विकसित होते हैं और संहिताबद्ध भी किये जाते है।  लिखित संविधान सदैव लिखित नहीं रहते, समय के साथ उनमे रूढ़ियाँ सृजित हो जाती है।  इनका बेहतरीन उदाहरण भारत और अमरीका के संविधान है।  

लिखित संविधान जटिल होते है।  क्योंकि उनमें संशोधन करने का तरीका कठिन होता है।  उनमे संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत की जरुरत होती है।  विशेष बहुमत ५५ से ७५ प्रतिशत के करीब हो सकता है।  संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैंड आदि के संविधान जटिल प्रकार के है। 

इन दो प्रकारों के अलावा संविधान का एक और प्रकार भी है। जिसे आंशिक रूप से परिवर्तनशील तथा आंशिक रूप से जटिल कहा जाता है।  ऐसे संविधानो में कुछ संशोधन साधारण बहुमत से तो कुछ संशोधनों के लिए विशेष प्रकार के बहुमत की आवश्यकता होती है। भारत का संविधान इस प्रकार के संविधान का उदाहरण है। 



संविधान का रूप
संविधान का रूप संघीय , परिसंघीय तथा एकात्मक स्वरूप का हो सकता है।  

परिसंघीय रूप में, कुछ संप्रभुता संपन्न देश अपनी संप्रभुता बनाये रखते हुए कुछ मामलो में अपने से ऊपर एक व्यवस्था निर्माण करते है। यूरोपियन यूनियन इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। 

संघीय रूप में, कुछ छोटी इकाइयां अपनी संप्रभुता छोड़ देती है।  उनसे बड़ी एक व्यवस्था के हातो संप्रभुता बहाल की जाती है।  परंतु अपने अलग अस्तित्व को समाप्त नहीं होने देते।  संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि संघीय रूप के उदाहरण है। 

एकात्मिक रूप में, देश में शक्तियों का विभाजन नहीं होता।  पुरे देश में एक ही सरकार का शासन चलता है।  प्रशासकीय दृष्टिकोण से कुछ स्थानीय व्यवस्थाएं होती है।  परंतु अंतिम अधिकार केंद्र के पास होते है।  यूनाइटेड किंगडम, सिंगापूर, फ़्रांस, इटली, इजरायल इस प्रकार के संविधान के उदहारण है। 

अपवाद स्वरुप में, ऐसा भी हो सकता है की, किसि देश का स्वरूप संघात्मक हो और शासन का स्वरुप एकात्मक हो।  इसका मतलब केन्द्रिय (संघीय) सरकार प्रान्तीय सरकारों की अपेक्षामें अधिक शक्तिशाली हो।  भारत इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। 



शासन के प्रकार
शासन संसदात्मक भी हो सकता है और अध्यक्षात्मक भी हो सकता है।  इसके अलावा अर्ध-संसदात्मक और अर्ध-अध्यक्षात्मक भी हो सकता है।  

संसदात्मक शासन में विधानपालिका और कार्यपालिका एक दूसरे से जुड़े हुए होते है।  ब्रिटेन और भारत इसके उदाहरण है। 

अध्यक्षात्मक शासन में विधानपालिका और कार्यपालिका एक दूसरे से अलग होते है।  संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनेशिया, मेक्सिको, दक्षिण कोरिया, फिनलैंड, श्रीलंका यह इसके उदहारण है। 
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Saturday, 4 March 2017

सौरमंडल

19:26
भूगोल शब्द के जनक ईरेस्टोस्थेनिस हैं।

सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। 


किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। 

हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके १६६ ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं।

सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है।


सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है।


कुछ उल्लेखनीय अपवादों को छोड़ कर, मानवता को सौर मण्डल का अस्तित्व जानने में कई हजार वर्ष लग गए। लोग सोचते थे कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का स्थिर केंद्र है और आकाश में घूमने वाली दिव्य या वायव्य वस्तुओं से स्पष्ट रूप में अलग है। 


लेकिन १४० इ. में क्लाडियस टॉलमी ने बताया ( जेओसेंट्रिक अवधारणा के अनुसार ) की पृथ्वी ब्रम्हांड के केंद्र में है और सारे गृह पिंड इसकी परिकृमा करते हैं लेकिन कॉपरनिकस ने १५४३ में बताया की सूर्य ब्रम्हांड के केंद्र में है और सारे गृह पिंड इसकी परिकृमा करते हैं।

सौरमंडल सूर्य और उसकी परिक्रमा करते ग्रह, क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओं से बना है। इसके केन्द्र में सूर्य है और सबसे बाहरी सीमा पर वरुण (ग्रह) है। वरुण के परे यम (प्लुटो) जैसे बौने ग्रहो के अतिरिक्त धूमकेतु भी आते है।




सूर्य
सूर्य की निर्मिति ४६० वर्ष पूर्व हुयी हैं। 


पृथ्वी की निर्मिति ४५० वर्ष पूर्व हुयी हैं। 


पृथ्वी और सूर्य के बीच का अंतर -  (१४ करोड़ ९० लाख किमी)


सूर्य की किरणे पृथ्वीपर पहुँचने में ८.२ मिनट इतना समय लगता है। 

सूर्य का व्यास १३ लाख ९२ हजार किमी है। 


सूर्य की सतह का तापमान - ५७६० डिग्री सेल्सियस


सूर्य का अंदरूनी तापमान - १.५ से २ करोड़ डिग्री सेल्सियस

२००८ में भारतने सूर्य के अध्ययन के लिए सबसे पहले 'आदित्य' यान भेजा था।


केंद्रीय सम्मिलनद्वारा सूर्य ऊर्जा पैदा करता है।

सूर्य का रासायनिक विश्लेषण (७१% हायड्रोजन, २६.५% हीलियम, २.५% अन्य)




ग्रह
ग्रहीय मण्डल उसी प्रक्रिया से बनते हैं जिस से तारों की सृष्टि होती है। 


आधुनिक खगोलशास्त्र में माना जाता है के जब अंतरिक्ष में कोई अणुओं का बादल गुरुत्वाकर्षण से सिमटने लगता है तो वह किसी तारे के इर्द-गिर्द एक आदिग्रह चक्र (प्रोटोप्लैनॅटेरी डिस्क) बना देता है। 

पहले अणु जमा होकर धूल के कण बना देते हैं, फिर कण मिलकर डले बन जाते हैं। गुरुत्वाकर्षण के लगातार प्रभाव से, इन डलों में टकराव और जमावड़े होते रहते हैं और धीरे-धीरे मलबे के बड़े-बड़े टुकड़े बन जाते हैं जो वक़्त से साथ-साथ ग्रहों, उपग्रहों और अलग वस्तुओं का रूप धारण कर लेते हैं।

जो वस्तुएँ बड़ी होती हैं उनका गुरुत्वाकर्षण ताक़तवर होता है और वे अपने-आप को सिकोड़कर एक गोले का आकार धारण कर लेती हैं।

किसी ग्रहीय मण्डल के सृजन के पहले चरणों में यह ग्रह और उपग्रह कभी-कभी आपस में टकरा भी जाते हैं, जिस से कभी तो वह खंडित हो जाते हैं और कभी जुड़कर और बड़े हो जाते हैं। 

माना जाता है के हमारी पृथ्वी के साथ एक मंगल ग्रह जितनी बड़ी वस्तु का भयंकर टकराव हुआ, जिस से पृथ्वी का बड़ा सा सतही हिस्सा उखाड़कर पृथ्वी के इर्द-गिर्द परिक्रमा ग्रहपथ में चला गया और धीरे-धीरे जुड़कर हमारा चन्द्रमा बन गया।

ग्रहों के क्रम:
०१. बुध
०२. शुक्र
०३. पृथ्वी
०४. मंगल
०५. गुरु
०६. शनि
०७. युरेनस
०८. नेपच्यून


२० अगस्त २००६ इस दिन झेक प्रजासत्ताक के प्राग शहर में ५७वी  खगोलीय परिषद का आयोजन किया गया था।  इस परिषद में प्लूटो का गृहपद छीन लिया गया।  प्लूटो को अब १३४३४० यह क्रमांक दिया गया है।


मंगल और गुरु ग्रहके बीच क्षुद्र ग्रह घेरा  है। क्षुद्रग्रह के घेरे के अंदर के ग्रहों को आतंरिक ग्रह कहा जाता है। आतंरिक ग्रह स्थायरूप हैं।  बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल आतंरिक ग्रह हैं। 

हाल ही में, अंधा से ग्रह पृथ्वी क्षुद्रग्रह के साथ antargraha हैं। Antargraha कवर फार्म के लिए मुश्किल है। उदाहरण के लिए। बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल।


शुक्र ग्रह पृथ्वी के सबसे करीब है। 


शुक्र ग्रह सबसे तेजस्वी ग्रह है।


शुक्र ग्रह को पृथ्वी की बहन कहा जाता है।


नेपच्यून ग्रह को परिभ्रमण में सबसे अधिक समय लगता है। (१६४ वर्ष)


बुध ग्रह को 
परिभ्रमण में सबसे कम समय लगता है। (८८ दिन)


गुरु ग्रह को परिवलन में सबसे कम समय लगता है। (९.९ घंटे)


शुक्र ग्रह को परिवलन में 
सबसे अधिक समय लगता है। (२४३ दिन)


पृथ्वी का परिभ्रमण - ३६५ दिन ५ घंटे ४८ मिनट ४६ सेकंड।


पृथ्वी का पेरिवलन - २३ घंटे ५६ मिनट ४ सेकंड।


पृथ्वी का एक उपग्रह है। मंगल के दो उपग्रह है। सबसे ज्यादा उपग्रह गुरु के पास है (६१ उपग्रह).

बुध और शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है।




धूमकेतु और उल्का
हैले का धूमकेतु सबमे पहली बार १९१० में देखा गया था। 


हर ७६ साल के बाद हैले का धूमकेतू दिखाई देता है। इससे पहले वह १९८६ में दिखाई दिया था। 

महाराष्ट्र के बुलढाना में लोनार झील बनी हुई है। यह झील पृथ्वी पर उल्का गिरने से बनी हुई है। 




आकाशगंगा
आकाशगंगा  का मतलब Galaxy. 


एक आकाशगंगा में १० से २० हजार करोड़ सितारे होते हैं। 

ब्रह्माण्ड में कुल २० लाख करोड़ आकाशगंगा मौजूद है। 

हमारी आकाशगंगा से सबसे नजदीकी आकाशगंगा M31 है. इसे  Andrimul  Nebula यह नाम दिया गया है। 
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Thursday, 2 March 2017

भौतिक राशी

21:38
वे सभी राशियाँ जिन्हें हम एक संख्या द्वारा व्यक्त कर सकते हैं तथा प्रत्यक्ष रूप से माप सकते हैं | उन्हें हम भौतिक राशियाँ कहते हैं |
जैसे- लम्बाई, द्रव्यमान, ताप, चाल, बल, समय आदि |


वह प्रक्रिया जिसमें हम यह पता करते हैं कि कोई दी हुई राशि किसी मानक राशि का कितने गुना हैं, मापन कहलाता है | हम कह सकते हैं कि किसी भौतिक राशि का मान ज्ञात करने के लिए किसी मानक से तुलना करना ही मापन है |
किसी भौतिक राशि के एक नियत परिमाण को मानक (Standard) मान लिया जाता है तथा इस पर परिणाम का संख्यात्मक मान 1 माना जाता है | इस मानक के नाम को उस राशि का मात्रक कहते हैं.



मापन प्रणाली
MKS प्रणाली - मीटर, किलोग्राम, सैकण्ड। इसे  मीट्रिक प्रणाली कहा जाता है।
CGS प्रणाली - सेंटीमीटर, ग्राम, सेकंड।
FPS प्रणाली - फीट, पाउंड, सेकंड। इसे ब्रिटिश प्रणाली भी कहा जाता है।

एसआई प्रणाली (सिस्टम इंटरनेशनल) - MKS प्रणाली के अंतर्राष्ट्रीय मान्यताके साथ स्वीकार की गयी प्रणाली।

एसआई प्रणालीको १९६० में GGPM-Conférence générale des poids et mesures (General Conference on Weights and Measures) सम्मेलन में मान्यता प्रदान की गयी। इस परिषद में ७ मुलभुत राशियां, २ पूरक राशियां और १९व्युत्पन्न राशियां उनके विशिष्ट नामों के साथ स्वीकृत की गयी। अंतर्राष्ट्रीय मापन कार्यालय पेरिस के पास सेवेरस में है।




भौतिक राशियों का वर्गीकरण
मूल राशियाँ (Fundamental Quantities)
वे भौतिक राशियाँ जो एक दूसरे पर निर्भर नहीं करती हैं | मूल राशियाँ कहलाती हैं तथा इनके मात्रक मूल मात्र कहलाते हैं | जैसा कि निम्न टेबल में सात मूल राशियोंकी SI यूनिट प्रदर्शित है-
मूल राशियाँमूल मात्रक (Fundamental Quantities)संक्षिप्तियाँ (Fundamental units) 
लम्बाई  मीटर  m
द्रव्यमान  किलोग्राम kg
समय  सेकण्ड  s
विद्युत धारा एम्पियर  A
ताप  कैल्विन  K
ज्योति तीव्रता केंडिला  cd
पदार्थ की मात्रा मोल  mol

पूरक राशियाँ (Supplementary Quantities)
तलीय कोण (Plane Angle) तथा घन कोण (Solid Angle) पूरक राशियाँ है तथा इनके मात्रक क्रमशः रेडियन तथा स्टेरेडियन है |


व्युत्पन्न राशियाँ 
वे राशियाँ जो मूल राशियों के पदों में व्यक्त की जाती हैं, व्युत्पन्न राशियाँ कहलाती हैं | क्षेत्रफल, आयतन, दाब, चाल, घनत्व आदि | व्युत्पन्न राशियों को व्यक्त किए जाने वाले मात्रक को व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं |



अदिश एवं सदिश राशियाँ (Scalar and Vector Quantities)
भौतिक राशियाँ दो प्रकार की होती हैं-
०१. अदिश राशि
०२. सदिश राशि

अदिश राशियाँ (Scalar Quantities)
जिन भौतिक राशियों को व्यक्त करने के लिए केवल परिमाण (Magnitude) की आवश्यकता होती है दिशा की नहीं, उन्हें अदिश राशि कहते हैं |

जैसे:- लम्बाई, दूरी, समय, क्षेत्रफल, द्रव्यमान, आयतन, चाल, घनत्व, दाब, कार्य, ऊर्जा, आवेश, आवृत्ति, विशिष्ट ऊष्मा, शक्ति, कोण, ताप, विद्युत धारा, विद्युत विभव आदि अदिश राशियाँ हैं |

चलिए अदिश राशि को एक उदहारण द्वारा समझने का प्रयास करते हैं-

यदि हम आपसे कहें कि आपके घर से स्कूल 2km की दूरी पर है |

आप ध्यान दें तो आप पायेंगे कि इसमें दिशा की कोई बात नहीं की गयी अर्थात् स्कूल घर से 2km दूरी पर है लेकिन किस दिशा में है, ये बात अज्ञात है, अतः हम दूरी के अदिश कहेंगे |


सदिश राशियाँ (Vector Quantities)
जिन भौतिक राशियों को पूर्णतया व्यक्त करने के लिए परिमाण के साथ-साथ दिशा की भी आवश्यकता होती है, उन राशियों को सदिश राशियाँ कहते हैं |

जैसे- विस्थापन, वेग, बल, त्वरण, संवेग, बल-आघूर्ण, आवेग, भार, विद्युत क्षेत्र, चुम्बकीय बल-क्षेत्र, कोणीय वेग आदि सदिश राशियाँ हैं |

चलिए सदिश राशि को समझने के लिए एक उदहारण लेते हैं- यदि हम आप से कहें कि इस दरवाजे को बंद करने के लिए 2 न्यूटन का बल लगाइए |

आप ध्यान देंगे तो पायेंगे कि यह कथन अपूर्ण है | इसके लिए हमें आपको कहना चाहिए था कि इस दरवाजे को बन्द करने के लिए 20 न्यूटन का बल अन्दर की ओर लगाओ | अतः बल के लिए हमें परिमाण (20 न्यूटन) तथा दिशा (अन्दर की ओर) दोनों की आवश्यकता पड़ती है, इसलिए हम निश्चित रूप से कह सकते हैं, कि बल सदिश राशि है |



मात्रक
किसीभी दो बिन्दुओ के बीच के अंतर को लंबाई कहा जाता है। लंबाई का MKS प्रणाली में मात्रक मीटर है।  

आंतरराष्ट्रिय वजन और मापन संघटन के संग्रहालय में रक्खी हुयी ९०% प्लैटिनम और १०% इरेडियम इस मिश्र धातु से बानी हुयी सलिया के लंबाई को को ई मीटर कहा जाता है। इसे २७३.१६ K और १ बार दाब के वातावरण में रक्खा गया है। 

प्रकाशन अंतरिक्षमें १ / २९९७९२४५८ सेकण्डमें पार किये हुए अंतर को १ मीटर कहा जाता है। 

लंबाई का बड़े प्रमाणवाला मात्रक प्रकाशवर्ष है। १ प्रकाशवर्ष = 9.46 X 1012 km



लंबाईकी बड़े प्रमाणवाली मात्रके मायक्रोमीटर्स एव मायक्रॉन (um), ऍगस्ट्रॉम (A), नॅनोमीटर (mn), फेम्टोमीटर (fm) हैं.

विभिन्न शास्त्रो में अंतर के लिए इस्तेमाल की जानेवाली मात्रके
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Sunday, 26 February 2017

रेग्युलेटिंग एक्ट (नियामक अधिनियम) १७७३

13:16
रेग्युलेटिंग अधिनियम १७७३ की पृष्ठभूमि
०१. दिवालियापन और दोहरी राजनीति के दुष्परिणाम के वजहसे कंपनीने ब्रिटिश सरकारसे १४ लाख ऋण माँगा। इस घटना से फायदा लेकर कंपनीपर नियंत्रण प्राप्त करने के हेतु ब्रिटिश संसदने यह कानून १७७३ में लागू किया।


०२. कंपनी के सेवकों ने भारी पैमाने पर बंगाल में अत्याचार किये। कारागीरोंसे जबरदस्ती सस्ते दामो में माल लेना, उन्हें दण्डित करना, कारागृह भेजना, किसानों और व्यापारियों से जबरदस्ती ऋण की प्रतिभूतियां लिखकर लेना इस प्रकार के अत्याचार किये जाते थे। इस वजह से इंग्लैंड की जनता कंपनी प्रशासन की आलोचना करने लगी। 

०३. प्लासी युद्ध के बाद अंग्रेजो का भारत की राजनीती में प्रवेश हुआ और बक्सर के युद्ध के बाद भारत में कंपनी की एक स्थिर सत्ता प्रस्थापित हुई। रक्षा, विदेश नीति, अनुबंध, संधि, आदि अधिकार कंपनी को मिल गए। लेकिन किसी देश का शासन एक व्यापारी कंपनी के पास रहना योग्य नहीं है ऐसा मत इंग्लैंड के राजनीत के बुद्धिजीवियों ने व्यक्त किया। यह कहा जाता है कि व्यापारी कुशल प्रशासक नहीं होते।

०४. कंपनी के कर्मचारियोंने अवैध मार्ग से बड़ी मात्रा में खुद के लिए पैसा जमा किया था। कंपनीके युद्ध नीति के चलते कंपनी की आर्थिक हालत खस्ता हो चुकी थी। इसलिए कंपनीने ब्रिटिश संसद तरफ मदद के लिए हाथ फैलाया। 

०५. १७७२ में संसदने कंपनीके के कार्यों की पूछताछ करने के हेतु ३१ सदस्यों वाली 'प्रवर समिति' और १३ सदस्योंवाली 'गुप्त समिति' की नियुक्ति की। समिति की रिपोर्ट के आधार पर कंपनी को १४ लाख पाउंड राशि ऋण दी गयी। उसी के साथ उसी वक्त १ अक्टूबर १७७३ में 'रेग्युलेटिंग एक्ट' मंजूर किया गया।  



रेग्युलेटिंग एक्ट (नियामक अधिनियम) १७७३
इसका उद्देश्य कंपनी के संगठन और प्रशासन के दोष दूर करके भारत की जनता को सुशासन प्रदान करना था। 

इस एक्ट द्वारा बंगाल गवर्नर को गवर्नर जनरल पद दिया गया। मद्रास और मुम्बई के गवर्नर को बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन रखा गया। बंगाल गवर्नर जनरल को मुम्बई में युद्ध और शांति के विषय में कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया।

गवर्नर जनरल की मदद करने के लिए चार सदस्यीय कार्यकारी मंडल की नियुक्ति की गयी। उन्हें पदमुक्त करने का अधिकार केवल ब्रिटिश सम्राट को ही था। कार्यकारी बोर्ड का फैसला बहुमत के आधार पर लिया जाता था।  जिसमे गवर्नर जनरल को विशेष मत का अधिकार था

वॉरेन हेस्टिंग्ज बंगाल के पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड बनाया गया। और फिलिप फ्रांसिस, क्लेवरिंग, मोनसन, बोरवेल इनकी ५ साल के लिए कार्यकारी मंडल पर नियुक्ति की गयी।
इस अधिनियम द्वारा १७७४ में कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट स्थापित किया गया। इस अदालत को यूरोपीय, कलकत्ता के नागरिक, कंपनी के अपने कर्मचारियों के दावों का निर्णय लेने के लिए स्थापित किया गया था। गवर्नर जनरल और कार्यकारी मंडल सदस्य के अलावा कंपनी और सम्राट की सेवा में रहनेवाले सभी कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार अदालत को दिया गया। 

इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश और अन्य तीन न्यायाधीशों की रचना की गयी। अदालत को प्राथमिक और अपील अधिकार दिया गया। निर्णय देने के लिए जूरी विधि बनाया गया। कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालयके पहले मुख्य न्यायाधीश 'एलिजा इम्पे' ये थे और अन्य दो चेम्बर्स लिमेस्तर और  हाइड थे.

इस अधिनियम के तहत कंपनी के कर्मचारियों पर निजी व्यवसाय करने पर और उपहार और रिश्वत स्वीकारने पर प्रतिबंध लगायाया गया। प्रति २० साल के बाद इस विशेषाधिकार का नवीनीकरण किया जाये ऐसा प्रावधान इस अधिनियम में था।  

ब्रिटिश सरकार के 'कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर'के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त किया गया। कंपनी डायरेक्टर्स का कार्यभार संसदने नियुक्त किए हुए 'निगरानी समिति' के अधीन रहेगा ऐसा निर्णय लिया गया। कंपनी के राजस्व लेनदेनसंबंधी की जानकारी वित्त विभाग को और सैन्य और नागरिकसंबंधी जानकारी गृह सचिव को पहुँचाना अनिवार्य किया गया। 

निदेशक मंडल की टर्म १ साल से ४ साल तक बढाई गई। निदेशकों की संख्या  २४ की गई। उनमे से ६ निदेशक हर साल सेवानिवृत्त होते और उतनेही नए निदेशकोंकी नियुक्ति की जाती।

१७८० में ब्रिटिश संसदने एक कानून पारित कर दिया। जिसके अनुसार गवर्नर जनरल को मुख्य सेनापति का अधिकार दिया गया। लॉर्ड कॉर्नवालिस को गवर्नर जनरल बनाने के हेतु या कानून बनाया गया था। 



इस अधिनियम की विशेषताएं
भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी के कार्यों को नियंत्रित और नियमित करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार द्वारा किया गया यह पहला प्रयत्न था। इस द्वारा पहली बार कंपनी की प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों को मान्यता दी गयी।

इस अधिनियम द्वारा भारत में पहली बार केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गई।

११ साल के बाद १७८४ में पिट्स इंडिया एक्ट के लागू होने के बाद रेग्युलेटिंग एक्ट ख़त्म हो गया।

लॉर्ड वॉरेन हेस्टिंग्ज इस एकमात्र गवर्नर जनरल के कार्यकाल में यह अधिनियम कार्यान्वित था। 



एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट (१७८१)
रेग्युलेटिंग एक्ट में प्रशासन के अधिकार काउन्सिल को सौंप दिए थे। इससे गवर्नर जनरल की हालत काफी कमजोर थी। गवर्नर जनरल, काउन्सिल और न्यायालय इनके अधिकार में अस्पष्टता थी। प्रांतीय गवर्नर ने परिस्थितियों नुसार गवर्नर जनरल के आदेश से इनकार कर दिया था। जिसकी वजह से सर्वोच्च सत्ता का कोई मतलब ही नहीं था। इसलिए रेग्युलेटिंग एक्ट का संशोधन कानून मंजूर किया गया। 

कंपनी के अधिकारीयो को शासकीय कार्यों के लिए सुप्रीम कोर्ट की सीमा के बाहर किया गया। सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित किया गया। कलकत्ता के सभी निवासियों पर सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार स्थापित किया गया।

प्रतिवादी (Defendant) के मामले में उनका निजी कानून लागू करने का आदेश दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने नियमों और आदेशों को लागू करते समय भारतीय लोगोंके धार्मिक विरासत और सामाजिक रीति-रिवाजों का सम्मान करने का आदेश दिया गया।

इन सब घटनाओ के बीच इंग्लैंड संसद में एक बिल लाया गया।  जिसमे भारत में कंपनी की सत्ता ब्रिटिश संसदद्वारा हथियाने संबंधी प्रावधान थे।  यह विधेयक हॉउस ऑफ़ लॉर्ड में नामंजूर किया गया। इसकी वजह से ब्रिटेन की लॉर्ड फॉक्स सरकार को पदत्याग करना पड़ा।  भारतीय कारणवश ब्रिटेनमें सरकार गिरने की यह पहली और आखरी घटना थी। 
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